०८ नवंबर एक बड़े आद्यक्रांतिकारक वीर राघोजी भांगरे की जयंती...
आद्यक्रांतिकारक वीर राघोजी भांगरे का जन्म ८ नवंबर १८०५ में महाराष्ट्र के कोलवन प्रदेश के अहमदनगर जिले के देवगाव में हुआ। उनके पिता क्रांतीकारक रामजी भांगरे जो ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह किया उनको काले पानी की सजा दी गई। रामजी के चाचा भी वालजी भांगरे क्रांतिकारक थे। ऐसे क्रांतिकारी परिवार में राघोजी भांगरे का जन्म हुआ।
राघोजी भांगरे जन्मदिन के अवसरपर राज्य सरकार ना कोई जयंती मनाती है और नाही समाज मनाता है क्योंकी इस देश इतिहास कार, लेखक जात पात के नाम पर अपने मन में आए क्रांतिकारक को बड़ा दिखाते है।जिसने ऊँगली भीं नही काँटी उनको बडे नायक के रूप से सामने लाया जाता है। लेकिन जो सच में बड़े क्रांतिकारक है उनका इतिहास सिर्फ सरकारी दप्तरो में बंद करके ही यह आज नष्ट कर रहे है। हालही में बहुत कुछ संशोधन सामने आ रहे कुछ सरकारी दस्तावेज में गैझट में राघोजी रामाजी भांगरे (भांगरा) महाराष्ट्र के सबसे बड़े प्रभावी क्रांतिकारक, इतना ही नही बल्कि तुघलक, बहामनी से लेकर अंग्रेजी शासन के आखरी तक भारत में सबसे प्रभावी शुर, सबसे ज्यादा समय तक अंग्रजो से और शेठ, साहूकार से लोहा लेनेवाला लंबी लढाई चलाने वाला बंडकरी, शूरवीर, और निडर शुर योद्धा के नाम से ब्रिटिश साहित्यिक और ब्रिटिश कॅप्टन पुलिस अधिकारियोने नवाजा गया है।
ये इतने प्रभावी है के इनके दस्तावेज महाराष्ट्र के सात जिलो में मिलते है जो इनका संघर्ष ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ और देश में एक बड़ा राष्ट्रीय उठाव जो 1857 का है। उनकी प्रेरणा राघोजी भांगरे से ही है।
जो की उनको १३ अप्रैल १८४८ में ठाणे जेल में फ़ासी दी गयी। लेकिन इनका शरीर इतना मजबूत था की पहली बार फाँसी की डोर ही टूट गयी फिर दोबारा २ मई १८४८ लोहे की जंजीर से फाँसी देनी पड़ी।
राघोजी ने १८३८ से १८४८ तक अंग्रेज शासन से कड़ा संघर्ष किया इतना ही नही बल्कि इनके (बंडकरी) बंड के लोग जो इनके विचारों से प्रभावित होकर सह्याद्री के क्षेत्र में देश की आझादी के लिए अखरी तक लढे।
राघोजीने ब्रिटिश खजाना कई बार लुटा और गाँव गाँव में बाट दिया। अंग्रेजों का साथ दे रहे शेठ, साहूकार, मारवाड़ी पर दरोडा डालकर सम्पत्ती लूटकर शासन कर रहे मारवाड़ीयोंने गाँव गाँव छोडके भाग गए। कोंकण में एक लूटमार की घटना का आरोप रखकर राघोजी को पकड़ने के लिए पुलिस अधिकारी अमृतराव भट्ट ने राघोजी की माँ ,समेत पत्नी,और परिवार के अन्य लोगोंपर अनन्य अत्याचार किये स्रियोंके स्तन को तुमड़ी (पत्रे का चिमटा) लगाई और पुरुषों के वृषो को तुमड़ी लगाकर राघोजी का गुन्हा कबूल करवाने ओर राघोजी का पता पूंछके हाल हाल किया लेकिन अपने देश के लिए लढ रहे बेटे का पता नही बताया।
राघोजी ने अपने क्षेत्र को आझाद घोषित किया था।जो की छत्रपती शिवाजी राजा के बाद जो स्वराज्य पेशवाई के हात में गया था उसी समय और यहाँ के नगर,नाशिक,ठाणे, पुणे,रायगड,धुलिया तक यहाँ के आदिवासी और गरीब जनता से एक लाख सत्तावीस हजार हेक्टर जमीन शेठ,साहूकार और अन्ग्रेजोंने हड़प कर ली थी राघोजी भांगरे ने क्रांतिकारकोंकी फौज ही खड़ी की थी।और यहाँ के सब लोग कोळी महादेव,ठाकर ,कोकणा, भिल्ल वारली,कातकरी ये आदिवासी समाज राघोजी के साथ पूरा सहयोग देते थे जो उस समय एक लाख लोगोंकी राघोजी ने सभा ली थी।
इस सह्याद्री के क्षेत्र में जो एक लाख सत्तावीस हजार हेक्टर जमीन छिनी थी वो जमींन राघोजी भांगरे ने छीनकर वापस आदिवासी और गरीब जनता को बाँट दी ।
इनके बंड में यहाँ के रामोशी ,मराठा बंडकरी भी शामिल हुये ये बंड सातारा जिले तक पहुंचा जो की शिवाजी राजा के वंशज सातारा में उनको पदच्युत किया था, छत्रपती प्रतापसिंह को फिर गद्दी पे बिठाकर अन्ग्रेजों का शासन उखाडकर स्वराज्य निर्माण की कौशिश राघोजी भांगरे ने की थी।इनका पुख्ता सबूत जो राजा प्रतापसिंह का विश्वासू आत्माराम वाणी और अंतोबा लोटेकर दोनोही ग्वालियर के शिंदे सरकार का दूत बताकर मराठे,भिल्ल, रामोशी और महादेव कोळी राघोजी के साथीदार (बंडकरी)योंके साथ २९जनवरी १८४४ पाडोशी के जंगल पहाड़ में मुलाक़ात की थी।
साहूकार, मारवाड़ी, शेठ जी जमीनदार जो गरीब जनता पर अन्याय कर रहे उनके जमीन के कागजाद राघोजी ने जला डाले और उन अत्याचारीयोंको शासन भी दिया जो उनके नाक और कान काँट दिये थे ।
राघोजी स्रियोंका बड़ा सम्मान करते थे।अपनी टोळी के लोगोंको सक्त ताकीद थी,की जुल्म की कोई घटना न होने पाए।
अंग्रेज सरकार को मुल्ख छोड़ने की चेतावनी दी थी,नही तो अंग्रेजोंका साम्राज्य तबाह कर देंगे।तो ब्रिटिश सरकार ने राघोजी को पकड़ने पर ५००० का इनाम भी रखा था।
राघोजी को पकड़ने कई बार कॅप्टन मँकिंटोश मुंबई से पुलिस पलटन लेकर आया था लेकिन जंगल पहाड़ी क्षेत्र में राघोजी के सेना के सामने पुरे हतबल होते बल्कि ये बंडकरी राघोजीके साथीदार कहाँसे आयेंगे और उल्टा हमेही मार देंगे ऐसा पुलिस को डर था ।
एक बार राघोजी को पकड़नी आयी एक पुलिस फलटन एक हजार की हत्यारबंद थी लेकिन अकोले के छोटे गाव में एक ही रात में एक हजार पुलिस फौज को मारकर कूआ में गाड डाला कुआ माती से भर दी ऊपर से हाल चलाये खेती जैसा बनाव किया और दूसरी जगह रात में ही दूसरी नई कुआ खोद डाली ।
अंग्रेज पुलिस राघोजी के नाम से ही काँपते थे।
ये भी नही बल्कि जोतिबा फुले ने जो सत्यशोधक चळवळ शुरू की थी वो राघोजी भांगरे के कर्मक्षेत्र जुन्नर से की थी जो वहाँ का समाजमन क्रांती के कगार पर था।जोतिबा ने राघोजी के उठाव, बंड,क्रांति का पूराअध्ययन किया था जो उनको राघोजी से प्रेरणा मिली है।और जो जोतिबा के साहित्य में इन विचारोंकी विशेषताऐ सामने आती है।
१८४५ में कुछ लोग फितूर होकर राघोजी और उनके साथीयोंके बारे में पुलिस से जानकारी दी उस समय उनके विश्वासू साथीदार देवजी आव्हाड समेत ढ़ेड्सौ से ज्यादा बंड के लोग मारे गए।
उसके बाद भी कडा संघर्ष रहा सातारा के कुछ लोग बंड में शामिल करने के लिए और सातारा के स्वराज्य के बारे महत्वपूर्ण बैठक के लिये राघोजी ने वेशांतर करके पंढरपुर यात्रा में मिलने का प्रयोजन रखा लेकिन पुलिस ने हेर रखे थे और २ जनवरी १८४८अंग्रेज अधिकारी लेफ्टनंट गेल ने नदी के किनारे जाल में पकड़ा उस समय राघोजी ज्यादा साथियों के साथ नही था।राघोजीने बिनासंघर्ष समर्पण किया।
कोर्ट में अन्ग्रेजोने बिना वकील के देशद्रोह का मुकादमा चलवाया राघोजीने खुद अपनी केस लढी सुनवाई हुई फ़ासी तय हुई।
आखरी समय कोर्ट में बोले थे , " मै देशद्रोही नही कोई चोर लुटेरा नही फांसी मत दो तुम हमारे देश से चले जाव, मै क्रांतिकारक हूँ, मुझे बंदूक की गोली से उड़ा दो या तलवार से मेरा सीर कलम कर दो ।
ऐसे आदिवासी वीर राघोजी भांगरे का सह्याद्री का जंगल पहाड़ आज भी गीतों से गुनगुनाता है।
"राघू ने केला बंड या चहुमुलखात"
म्हणून दिसतोय उभा हा सह्याद्री आज दिमाखात ।।
-संकलित : सुशिल म. कुवर
फोटो प्रतिकात्मक आहे आवर्जून शेअर करू शकता
ये तो चार साल पहले लिखा मेरा ही लेख है।
उत्तर द्याहटवा